मेरी आँखों में मुहब्बत के जो मंज़र हैं
तुम्हारी ही तो चाहतों के समंदर है।
मैं हर रोज चाहता हूँ कि तुझसे ये कह दूँ मगर
लबों तक नहीं आता, जो मेरे दिल के अन्दर है।
मेरे दिल में तस्वीर है तेरी, निगाहों में तेरा ही चेहरा है,
नशा आँखों में मुहब्बत का, वफ़ा का रंग ये कितना सुनहरा है।
दिल की कश्ती कैसे निकले अब चाहत के भंवर से,
समंदर इतना गहरा है, किनारों पर भी पहरा है।
वो हर रोज मुझसे मिलती है, मैं हर बार नहीं कह पाता।
जो दिल में इतना प्यार भरा है, लबो पर क्यों नहीं आता?
हम भी कभी नहीं करते थे प्यार-मुहब्बत के किस्सों पर यकीं,
मगर जब दिल को छू जाये कोई एक बार, फिर कोई और भाता नहीं।
मेरी उम्मीद का सागर कुछ यूँ छूटा है,
कि जेसे हर जर्रे-जर्रे ने हमको लूटा है।
कस्तियाँ सारी डूब गयी साहिलो तक आते आते,
होसला जो बचा था तुफानो में, किनारों पर आकर टूटा है।
मेरी आँखों में अब भी मुहब्बत की वो ही कहानी है।
दिल के सागर में लहरें उम्मीद की, धडकनों में चाहत की रवानी है।
मैं हर पल तुझे भूलना चाहता हूँ, मगर मालूम है मुझको,
तुम्हारी याद तो हर साँस में आनी है, तुम्हारी याद तो हर साँस में आनी है।
बड़े ही खूबसूरत चेहरे हैं,
लगता है इनमें राज बहुत गहरे हैं।
इश्क़ तो करना मगर किसी की चाह मत रखना,
जुल्फों के बादल है ये, कब एक जगह ठहरे हैं।
मेरी उम्मीद का सागर कुछ यूँ छूटा है,
कि हर ज़र्रे-ज़र्रे ने हमको लूटा है।
कश्तियाँ सारी डूब गयी साहिलों तक आते-आते,
हौसला जो कुछ भी बचा था तूफानों में, किनारों पर आकर टूटा है।
खोल दे पंख मेरे कहता है परिंदा, अभी और उड़ान बाकी है।
ज़मीं नहीं है मंजिल मेरी, अभी पूरा आसमान बाकी है।
लहरों की ख़ामोशी को समंदर की बेबसी मत समझ ऐ नादान,
जितनी गहराई अन्दर है, बाहर उतना तूफान बाकी है।
जो मिल जाये मुहब्बत तो हर रंग सुनहरा है।
जो ना मिल पाए तो ग़मों का सागर ये गहरा है।
आँखों में मेरी है जिसका अक्स, दिल से कितना दूर वो शख्स।
रौशनी कैसे आये हमारे घर तो अँधेरों का पहरा है।
मन तेरा मंदिर है, तन तेरा मधुशाला
आँखें तेरी मदिरालय, होंठ भरे रस का प्याला
लबों पर ख़ामोशी, यौवन में मदहोशी
कैसे सुध में रहे फिर बेसुध होकर पीने वाला।
किसी की ख़ूबसूरत आँखों में नमीं छोड़ आया हूँ।
ख़्वाबों के आसमाँ में हकीकत की ज़मीं छोड़ आया हूँ।
मुहब्बत नहीं है कम हाथों में अंगारे रखने से,
लगता है इश्क में फिर कुछ कमी छोड़ आया हूँ।
तेरे होंठो की मुस्कुराहट खिलती कलियों सी है।
तेरे बदन की लिखावट सँकरी गलियों सी है
चंद्रमा है रूप तेरा, मन तेरा दर्पण है
तेरी हर एक अदा पर क्षण-क्षण, कण-कण जीवन समर्पण है।
बिखरे हुए सुरों को समेटकर एक नया साज लिख जाऊँगा।
गूँजती रहेगी सदियों तक फिज़ाओं में, एक रोज़ वो आवाज़ लिख जाऊँगा।
लिखता हूँ गीत मुहब्बत के मगर करता हूँ ये वादा
लहू की हर एक बूँद से एक दिन इन्कलाब लिख जाऊँगा !
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