जख़्म भर जाते हैं चोट के निशान रह जाते हैं।
इश्क़ में अक्सर कितने एहसान रह जाते हैं।
बेशक़ जान लेता है सारा जमाना हमको मगर,
अक्सर हम खुद से ही अनजान रह जाते हैं।
खामोश रहते हैं होंठ, निगाहें भी कुछ कहती नहीं,
दिल के किसी कोने में मगर यादों के तूफ़ान रह जाते हैं।
सब कुछ मिट जाता है इश्क़ में एक वक्त के बाद,
वो हमारे, हम उसके दिल में बस मेहमान रह जाते हैं।
जख़्म भर जाते हैं चोट के निशान रह जाते हैं।
इश्क़ में अक्सर कितने एहसान रह जाते हैं ।
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