ख़ता नहीं तो ख़ता क्या दूँ
घर नहीं घर का पता क्या दूँ
ढूंढता हूँ मैं ख़ुद को यहाँ
तुझे तेरा इत्तला क्या दूँ
गुनाहों का निगहबां हूँ बना
ख़ुद के गुनाहों की सजा क्या दूँ
मुहब्ब्त हो गई है बे-वज़हा
इस मुहब्बत को वज़हा क्या दूँ
दिल के तहख़ाने में हूँ कैद
मज़ा है जिसमें उसे रज़ा क्या दूँ
जो डूबा हो नशा-ऐ-चश्म में
भला उसे कोई नशा क्या दूँ
मुसाफ़िर जो बनाते है रास्ता
उन्हें भला मैं रास्ता क्या दूँ!
भूख ने दिया वास्ता रोटी का
उस रोटी को वास्ता क्या दूँ
ख़ुदा तुमने दी है कलम मुझे
तेरी रेहमत, तुझे बता क्या दूँ
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