एक शाम को जाते जाते
मैंने हाथ पकड लिया सूरज का
पूछा, कहाँ जाते हो मियाँ ?
उसने भी हाथ जोडकर बोल दिया
अरे जाने दो भईया . .!
जाना है अभी कई और देश
मिलना है उनसे जिनके है अनेक भेष
करना है उजियारा पश्चिम की गलियो में
देना है प्रकाश सूरजमुखी की कलियों में
जगाना है कई और परिंदे
जीजस और अल्लाह के बंदे
तपाना है सहारा का मरुस्थल
पिघलाना है ग्लेशियर का थल
अरे अरे चाचा तुम तो चल दिये,
देखते देखते ही निकल लिये,
कल तुम से पहले करुंगा तुम्हरा इंतजार,
जानूगां देश दुनिया का हाल,
कैसा है रुस अमेरिका पुर्तगाल ?
क्या. . . ? क्या . . . ? वहाँ भी होते है दंगे
करते है बच्चो को यतीम औरतों को नंगे॥
क्या वहाँ पर भी इज्जत लूटते है दरिंदे
या उड्ने देते है सबको जैसे हो आसमान के परिंदे॥
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